नई पुस्तकें >> दलित-विमर्श और हिन्दी साहित्य दलित-विमर्श और हिन्दी साहित्यदीपक कुमार पाण्डेय
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हिन्दी में दलित रचनाकारों की रचनाएँ लगभग तभी से मिलती हैं जब से हिन्दी साहित्य का आरम्भ होता है। सिद्धों-नाथों की बानियों से लेकर संत साहित्य तक दलित रचनाकारों द्वारा रचित विपुल साहित्य हिन्दी की अमूल्य सम्पदा है। आधुनिक युग में समता, न्याय और सामाजिक सम्मान के लिए अम्बेडकरवादी वैचारिक प्रेरणा से लिखे गए सामाजिक बदलाव के साहित्य को ‘दलित साहित्य’ की संज्ञा प्राप्त हुई। सचेत अम्बेउकरवादी प्रेरणा का साहित्य हिन्दी से पहले ही, मराठी आदि अन्य भारतीय भाषाओं में लिखा गया। पिछली सदी में 1980 के दशक से हिन्दी का दलित लेखन परिमाण और गुणवता, दोनों ही स्तरों पर अपनी सुस्पष्ट स्वतंत्रा पहचान बनाता है। दलित साहित्य अखिल भारतीय परिघटना है। हिन्दी में पिछले चार दशक से सक्रिय दलित रचनाकारों की अनेक पीढ़ियों के प्रतिनिधि स्वरों से रचा गया यह संकलन वक्त की माँग है।
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